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यदि आप थोड़ा सा भी सोंचे तो पायेंगे कि मानव किसी न किसी रूप मे अपना मूल्यांकन करता आया है और उस मूल्यांकन के आधार पर अपनी जीवन की दशा और दिशा को निर्देशित करता आया है। हम यह भी जानते हैं की एक ग़लत मूल्यांकन किसी के भी जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। फ़िर जब बच्चों की बात हो हो तो यह अति आवश्यक है की उनका मूल्यांकन सोच समझकर , कई अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं को ध्यान मे रखकर किया जाए क्योंकि आपके और हमारे द्वारा किया गया बच्चों का मूल्यांकन , बच्चों की जीवन दशा को बदलने की क्षमता रखता है।
अभी तक मैंने जो भी बात कही वह बच्चों के इर्द – गिर्द ही रही है , परन्तु यह विचारणीय है की क्या वास्तव मे मूल्यांकन सिर्फ़ बच्चों का ही होता है ? आप और हम अपने दिन याद करें। आप को सिर्फ़ एक-दो शिक्षक ही क्यों पसंद आते थे और उन शिक्षकों द्वारा पढाये गए विषयों मे आप अव्वल आते थे , परन्तु अन्य विषयों मे उतने अच्छे नहीं थे। इससे कम से कम यह तो पता चलता है कि कमजोर आप नहीं थे… परन्तु कहीं न कंही गडबडी तो हुई पर कंहाँ ? कैसे? क्या दोष शिक्षक मे था या शिक्षक द्वारा अपनाई गई शिक्षण पद्दति का या मूल्यांकन करने वाली विधि का या कँही और ?
यह गंभीर तथा विस्तृत विश्लेषण ही निर्णय देने का आधार बन जाएगा कि वास्तव मे बच्चा कितना सीख पाया। अगर कम सीखा तो क्यों और पूरा सीख गया तो कैसे?
मूल्यांकन सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु पह्चाने जा सकते हैं :-
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तो…….
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